भारतीय वायु सेना का आदर्श वाक्य ‘नभ : स्पृशं दीप्तम्’ (टच दास्काई विद ग्लोरी) गीता के ग्यारहवें अध्याय से लिया गया है जो यह महाभारत के महायुद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि मं् भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश का एक अंश है। भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को अपना विराट रूप दिखा रहे हैं और भगवान का यह विराट रूप आकाश तक व्याप्त है जो अर्जुन के मन में भय और आत्म-नियंत्रण में कमी उत्पन्न कर रहा है। इसी प्रकार भारतीय वायु सेना राष्ट्र की रक्षा में अपनी वांतरिक्ष शक्ति का प्रयोग करते हुए शत्रुओं का दमन करने का लक्ष्य करती है। श्रीमद भागवतगीता के अध्याय XI की पंक्ति 24 के श्लोक में है.
नभ:स्पृशं दीप्तम अनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् |
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो
हे विष्णों, आकाश को स्पर्श करने वाले, देदीप्यमान, अनेक वर्णों से युक्त तथा फैलाए हुए मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत अन्तःकरण वाला मैं धीरज और शांति नहीं पाता हूं।